दो आँखें
एक दूजे से
जब मिली
वो दो आँखे
तो
कई अनबुझे सवाल थे
प्रीत और
विश्वास के
फिर भी
मिलते ही
वो दो आँखें
खुश हो जाते
और ढूंढते रहते
वो वजह
फिर मिलने की
बस टकराते रहते
नज़र बचाके
मन को
कुछ नहीं भाये
जब तक
दो आँखें चार नहीं
कैसे करे वो बातें
झिझक बहुत थी
खुले आम मिलने पर
रात अँधेरी
वो आँखें कहाँ सोई
दिन में हरपल
मिलते ही
भटक जाते
बस यही सोच
कहीं कोई देख न ले
और रातभर
सोते नही वो
एक इसी ख्याल से
कल मिलेंगे फिर से
दो आँखें
तब होगी बातें
छुप-छुप के
वही मौन रह-रह के
आकाश यादव
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Khan
17-Oct-2022 12:35 AM
🌺💐👍👌🌸
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Raziya bano
16-Oct-2022 07:13 PM
शानदार
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Reena yadav
16-Oct-2022 04:14 PM
👍👍🌺
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